शिल्‍पकार ने तैयार की एक लाख रुपये की जैविक शॉल और 14 हजार का मफलर,

 सर्दी के मौसम में ठंड से बचने के लिए शॉल हर कोई ओढ़ता है। आपने शायद पांच सौ से पांच या छह हजार की शाॅल ही खरीदी होगी। क्‍या आप जानते हैं हिमाचल के शिल्‍प गुरु ने एक या दस हजार नहीं पूरे एक लाख रुपये की शाॅल तैयार की है। मंडी के अंतरराष्‍ट्रीय शिवरात्रि महोत्‍सव में इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जुट रही है। शॉल के साथ मफलर और पट्टू भी तैयार किए हैं। मफलर की कीमत 400 से 14,000 रुपये, शॉल 10 हजार से 1.05 लाख और पट्टू 20,000 रुपये तक का है। सिर्फ तीन शॉल थीं, जिनमें दो बिक गई हैं।

दरअसल, बीमारियां दूर करने वाली जड़ी-बूटियां अब पहनावे का भी हिस्सा बनी हैं। हाथ से बनाए मफलर, पट्टू व शॉल जैविक रंगों से निखर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में 'री-लिव द पास्ट' प्रदर्शनी में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिल्प गुरु ओपी मल्होत्रा के जैविक उत्पाद देखने के लिए भीड़ उमड़ रही है।

परंपरा को सहेजते हुए ओपी मल्होत्रा ने ऊन से बनने वाले इन उत्पादों को कैमिकल मुक्त कर दिया है। कारीगर हाथों से इनमें डिजाइन बनाते हैं। रंग स्थानीय जड़ी-बूटियों रत्नजोत, हरड़, अखरोट के छिलके, अनार के छिलके से बनाए जाते हैं। जड़ी-बूटियों को पीसकर इनसे प्राकृतिक रंग तैयार जाता है। यह रंग धोने पर भी बहुत कम निकलते हैं। ओपी मल्होत्रा बताते हैं कि शॉल को तैयार करने में छह माह से एक साल, पट्टू को तीन से चार माह और मफलर बनाने में दो माह का समय लग जाता है।

यह है खासियत

हाथ से बनाई शॉल, पट्टू व मफलर जैैविक रंगों से और आकर्षक दिखते हैं। इन्हें लंबे समय तक इस्तेमाल किया जा सकता है। कई बार लोगों को रसायनिक रंगों के कारण संक्रमण हो जाता है। जैविक रंगों से ऐसी कोई दिक्कत नहीं आती है।



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